Ekta Singh

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लेखनी कहानी -12-Jan-2023

      😓😓मुखौटो का राज 😓😓(मन खट्टा हो जाना)

ट्रेन ट्रेन ट्रेन (फोन की घंटी )
हैलो हैलो नमस्ते 🙏अंकल (सोनी)
महेंद्र सहगल- कैसी हो सोनी ?तुमने तो फोन ही नहीं किया?
सोनी -माफ करना अंकल टाइम नही मिला।

महेंद्र सहगल- कब मिलने का प्रोग्राम बना रही हो।
चाणक्यपुरी आ जाओ वहीं मिलते हैं वहाँ पर शांति से बात कर सकते हैं।
सोनी-अंकल आपको अपनी कविताएँ दिखानी थीं।
महेंद्र सहगल - वह भी ले आना।
सोनी- परसों दो बजे का प्रोग्राम बना लेते हैं।
बात करके सोनी फोन काट देती हैं और खुश हो जाती और अपनी सारी कविताओं को एक डायरी में लिख लेती है।और कहानियों को फोटो कॉपी करा लेती है।

फोन की घंटी बजती है।
हैलो-नमस्ते अंकल
महेंद्र सहगल -नमस्ते सोनी कैसी हो तुम?
सोनी-अंकल मैं ठीक हूं?
महिंद्र सहगल-सुनो 2:00 बजे तक पहुंच जाना।
सोनी-ठीक है अंकल मैं 2:00 बजे तक पहुँच जाऊंगी मेट्रो से।
महेंद्र सहगल-चलो फिर मिलते हैं।
सोनी फटाफट घर का काम करके निकल जाती है।
मेट्रो स्टेशन से उतरते ही वहीं पर थोड़ी दूरी पर उसको अंकल खड़े मिलते हैं वह अंकल के पैर छूती है और दोनों एक साथ चल देते हैं।

महेंद्र सहगल सोनी को कम भीड़ भाड़ वाली जगह पर ले जाते हैं। दोनों वहाँ जाकर बैठ जाते हैं।
महेंद्र सहगल सोनी से पूछते हैं बोलो क्या खाना है बताओ?
सोनी-अंकल मैं तो घर से खाना खा कर आई हूँ।
महेंद्र सहगल-अरे ऐसे थोड़ी ना कुछ तो ले लो मैं  भी लंच लेकर आया था। लेकिन मैं ऑफिस में ही छोड़ आया मैंने किसी को दे दिया। क्योंकि तुम्हारे साथ बैठकर कुछ खाऊंगा यहीं सोचा भूख लगी है ।चलो ऐसा करते हैं सांभर डोसा मंगवा लेते हैं । थोड़ा-थोड़ा खा लेंगे।
सोनी-ठीक है अंकल जैसी आपकी मर्जी।

महेंद्र सहगल वेटर को बुलाकर सांभर डोसा का ऑर्डर दे देते हैं। और उसको दो कप कॉफी लाने के लिए भी बोलते हैं।
महेंद्र सहगल-और बताओ सोनी कैसा चल रहा है परिवार में सब ठीक है। तुमको कितने सालों से बुला रहा हूँ।लेकिन तुम्हें टाइम ही नहीं मिलता। कितने दिनों से लिख रही हो तुम अब तक तो मैं तुम्हें बहुत आगे बढ़ा देता।
सोनी-अंकल मेरी यह डायरी है इसे देखिए जरा आप मैंने क्या लिखा है? क्या ठीक है क्या?
महेंद्र सहगल उसको ले लेते हैं। डायरी के पन्नों को आगे पीछे  पलटने लगते हैं। फिर सोनी की तरफ देखते हुए कहते हैं यह डायरी क्या मेरे पास छोड़ सकती हो। सोनी हां में हिला देती है।
तभी वेटर कॉपी लेकर आ जाता है। दोनों पीने लग जाते हैं ।

महेंद्र सहगल-देखो सोनी मैं तुमसे एक बात कहना चाहता हूँ। मुझे मालूम है हम लोग रिश्तेदार हैं। लेकिन इस बाउंड्रीज से बाहर निकलना पड़ेगा।
क्योंकि हमें खुल कर बात करनी होगी।तभी मैं तुम्हारी मदद कर पाऊंगा। तुम मुझे अपना दोस्त समझो। और तुम्हारे मन में जो है वह सब मुझे बताओ।
तुम्हें खुद को खोलना पड़ेगा। यह डर अपने मन से निकालना पड़ेगा। और देखो मुझे आगे से अंकल मत बोला करो। यह कहते हुए सोनी का हाथ पकड़ लेते हैं और कहते हैं अब हम दोस्त हैं तुम मुझे मेरे नाम से पुकार सकती हो।
सोनी-नहीं अंकल  मैं आपको नाम से कैसे पुकार सकती हूँ ।आप तो मेरे पिता के बराबर हैं।
महेंद्र सहगल-अरे मैं तुम्हें समझा रहा हूँ तुम समझ नहीं रही हो मेरी बात। इस रिश्ते से बाहर आओ।

सोनी-चलो ठीक है अंकल मैं आपको सर कह सकती हूं।
महेंद्र सहगल-ठीक है। चलो तुम मुझे सर कह सकती हो और सुनो आगे से मेरे पैर मत छूना।
सोनी-ठीक है। सर
महेंद्र सहगल-देखो मैं तुम्हारी ये कविताएं ले जाऊँगा आराम से ऑफिस में बैठ कर पढ़ लूँगा क्योंकि घर में तो मैं नहीं पढ़ सकता। तुम जानती हो ?मेरी बीवी को पता नहीं चलना चाहिए। तुम्हें पता है ?वह वैसे ही नाक में दम रखती है। और सुनो अपनी बहन को भी कुछ मत कहना कि हम लोग इस तरह से मिल रहे हैं। वह इतनी समझदार नहीं है। (सोनी हां में सिर हिला देती है)
मैं अपने सारे काम ऑफिस में जाकर ही करता हूँ।
और सुनो हमेशा मुझे लैंडलाइन पर ही फोन  किया करो मुझे कभी मोबाइल पर फोन मत करना।
इसी बीच वेटर सांभर डोसा लेकर आ जाता
है। दोनों अलग-अलग प्लेट में हाफ -हाफ कर खा लेते हैं।
महेंद्र सहगल-देखो सोनी तुम बहुत ही समझदार
लड़की हो। मैं तुम्हें देख पा रहा हूँ। तुम बहुत अंदर ही अंदर घुटती रहती हो। अंदर से डर निकाल दो और मुझे अपनी सारी बातें बताओ।
अब हम महीने में दो-तीन बार मिला करेंगे। देखना तुम्हें बहुत अच्छा लगेगा। तुम मुझसे अपनी सारी बातें शेयर कर सकती हो। देखना मैं तुम्हें लाइफ में बहुत आगे ले जाऊँगा। बड़े-बड़े न्यूज़पेपर में तुम्हारी कहानी पब्लिश करवा दूँगा।

ऐसे  ही मुझसे मिलने आती रहा करो। एक साथ बैठेंगे बातें करेंगे तभी तो कुछ अच्छा महसूस कर पाओगी।
* अपने मन में सोचती है यह अंकल कैसी बातें कर रहे हैं यहाँ तो मैं अपनी कविताओं के बारे में डिस्कशन करने आई थी और यह क्या बातें लेकर  बैठ गए।यह सब से "मेरा मन kh हो गया "
सोनी -सर मुझे अब घर जाना होगा बहुत देर हो गई है।
महेंद्र सहगल-ठीक है चलो चलते हैं मैं बिल पेमेंट कर देता हूँ।
सोनी-नहीं सर बिल मैं दे दूँगी आपको देने की जरूरत नहीं है।

महेंद्र सहगल-तुम भी दे देना कोई बात नहीं जब इतना कमाने लग जाओगी तो तुम ही बिल देना।
दोनों बात करते हुए बाहर निकल जाते हैं। सोनी अपने घर के लिए मेट्रो ले लेती है। महेंद्र सहगल अपने ऑफिस चले जाते हैं।

अगले दिन 12:00 बजे करीब लैंडलाइन से सोनी को फोन आता है पूछते हैं कि सोनी तुम कैसी हो और तुमको मेरे से मिल कर कैसा लगा। सोनी बोलती है हां जी सर अच्छा लगा। अब कब मिलने आओगी। सोनी टालने की कोशिश करती है। अब हर दूसरे तीसरे दिन अंकल फोन कर देते।

सोनी को भी लगा अपनी डायरी वापस लेनी थीं।
एक दिन और चलती हूँ मिलने। क्या पता वह महेंद्र अंकल को गलत समझ रही हो यह सोचकर वह एक दिन और मिलने का प्रोग्राम बना लेती है। दिन के 2:00 बजे करीब वह दोनों मिलते हैं। महेंद्र सहगल सोनी की तरफ हाथ बढ़ाते हैं लेकिन वह हाथ जोड़कर नमस्ते कर देती है।

फिर वह दोनों एक साथ बैठते हैं। और बातों का सिलसिला शुरू हो जाता है।
सोनी -क्या आपने मेरी कविताएं पढ़ी?
महेंद्र सहगल-हां सोनी तुम बहुत अच्छा लिखती हो
तुम जितनी खूबसूरत हो उतनी ही तुम्हारी लेखनी खूबसूरत है। लेकिन तुम्हारी लेखनी को मैं और अच्छा करना चाहता हूँ। उसके लिए तुम्हें मुझसे बार-बार मिलना पड़ेगा। यह लो अपनी डायरी रख लो।
तुम मेरी बात समझ रही हो ना? मैं क्या कहना चाहता हूँ ?
सोनी- चुपचाप सर हिला देती है।

महेंद्र सहगल -देखो सोनी लेखक बनना इतना आसान नहीं होता। बहुत मेहनत करनी पड़ती है।
अब हम लोग मिलते रहेंगे तो तुम अच्छा लिखने लग जाओगी। चलो पिक्चर देखने का प्रोग्राम बनाते हैं। मैं तुम्हारे लिए सीट बुक कर दूँगा। फिर हम एक दूसरे को जान पाएंगे तुम जितना खुलकर मेरे से बात करोगी  उतना ही तुम अच्छा लिख पाओगी। तुम अभी बहुत पुरानी सोच की लड़की हो। आजकल की लड़कियां बहुत खुले स्वभाव होती है। तुम तो हाथ मिलाने में भी डरती हो।
तुम यह सोच निकाल दो अपने मन से कि मैं बहुत तुमसे बड़ा हूँ।
थोड़ी देर में वेटर आ जाता है कॉफी और स्नेक्स दे जाता है। दोनों खाने लग जाते हैं।
पर सोनी को अंदर ही अंदर अच्छा नहीं लगता है।
थोड़ी ही देर में वह लोग वहां से बाहर निकल जाते हैं।
महेंद्र सहगल-चलो  जल्दी ही फिर प्रोग्राम बना लेना। सोनी हां कहती हुई निकल जाती है।
सोनी अपने घर आ जाती है। उसे बड़ा अफसोस होता है। एक 62 साल का व्यक्ति जोकि उसकी बहन का ससुर है। और एक बहुत प्रसिद्ध व्यंग्यकार लेखक हैं। जिस व्यक्ति की हर साल एक किताब पब्लिश होती है। उस व्यक्ति को हर साल लॉयल्टी मिलती है। इतने सारे पुरस्कार मिलते हैं।
उस इंसान की इतनी गलत सोच है?
उसे उस रात नींद नहीं आती है ।वह सोचती है क्या मुझे इस तरह का लेखक बनना है? कभी नहीं? क्या मुझे ऐसी प्रसिद्धि चाहिए? इस समाज में कितने मुखोटे पहनकर लोग घूमते हैं? और मैं चाह कर भी ऐसे लोगों का पर्दाफाश नहीं कर सकती। मैंने धीरे धीरे उनका फोन उठाना बंद कर दिया। एक दिन मैंने उनसे फोन करके कह दिया  मुझे ऐसा लेखक नहीं बनना। मुझे सच्चाई की राह पर चलना है। मुझे किसी को भी सीढ़ी बनाने की जरूरत नहीं है। इससे ज्यादा  मैं उनसे कुछ कह भी नहीं सकती थी उसके बाद मैं उनसे कभी नहीं मिली। इस समाज में कितने मुखोटे पहन कर लोग लोग घूमते हैं?

एकता सिंह चौहान
नई दिल्ली


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4 Comments

Rajeev kumar jha

23-Jan-2023 05:07 PM

Nice

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Sant kumar sarthi

21-Jan-2023 03:23 PM

शानदार

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Gunjan Kamal

20-Jan-2023 04:04 PM

सच्चाई को उजागर करती कहानी 👏👌🙏🏻

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